बसंत जब आता है, चहल-पहल होती है चहुं ओर, सर्द भरी ठिठुरन से मिलती है राहत, बसंत जब आता है, चहल-पहल होती है चहुं ओर, सर्द भरी ठिठुरन से मिलती ह...
शायद रास्ते में मिल जाए मेरी अपनी मंजिल। शायद रास्ते में मिल जाए मेरी अपनी मंजिल।
लोग राग-रंग का उत्सव मनाते हैं ऋतुराज बसंत जब आते हैं। लोग राग-रंग का उत्सव मनाते हैं ऋतुराज बसंत जब आते हैं।
कैसे हो गई मैं तुम्हारे पैरों की धूल, जो तुम देते हो मेरे प्रत्येंगो को शूल। कैसे हो गई मैं तुम्हारे पैरों की धूल, जो तुम देते हो मेरे प्रत्येंगो को शूल।
कविता लिखना भीवैज्ञानिक खोज सेकुछ कम नही है कविता लिखना भीवैज्ञानिक खोज सेकुछ कम नही है
तो समझिये बस निकट ही है सुख की भोर ! तो समझिये बस निकट ही है सुख की भोर !